कानपुर डॉग-क्राइसिस 2025: जब शहर बना लावारिस कुत्तों और बंदरों के आतंक का अड्डा


कानपुर शहर इन दिनों एक अलग ही संकट से जूझ रहा है। दहेली सुजानपुर, कोयलानगर, रामपुरम, सतबरी और पीएसी बाईपास जैसे इलाके लावारिस कुत्तों और बंदरों के आतंक से बेहाल हैं। यह संकट अब इतना गंभीर हो गया है कि गली-मोहल्लों से लेकर अस्पताल और सरकारी दफ्तर तक इन जानवरों की दहशत महसूस की जा सकती है।

दिनभर बंदर और कुत्ते गलियों, छतों और पार्कों में मंडराते रहते हैं। हालात यह हैं कि सीएमओ ऑफिस और कांशीराम हॉस्पिटल में भी कुत्तों का झुंड घूमता रहता है। मरीज और उनके तीमारदार कई बार इनके हमलों का शिकार बन जाते हैं। तीन जुलाई को सीएमओ ऑफिस में तो कुत्तों ने डॉक्टर समेत पाँच लोगों को काट भी लिया था।

छात्रा पर हमला: 17 टांकों के बाद भी दहशत

20 अगस्त को इस संकट ने एक छात्रा की जिंदगी बदल दी। श्यामनगर की केडीए कॉलोनी, दहेली सुजानपुर में रहने वाली वैष्णवी (21), जो बीबीए तृतीय वर्ष की छात्रा है, कॉलेज से लौट रही थी। घर से कुछ ही दूरी पर मधुबन पार्क के पास लावारिस कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया।

हमले में उसका चेहरा बुरी तरह घायल हुआ और डॉक्टरों को 17 टांके लगाने पड़े। अब हालत यह है कि वैष्णवी नींद से अचानक उठ बैठती है, भीड़ देखकर घबरा जाती है और बोलने की स्थिति में भी नहीं है। परिवार सरकार से मांग कर रहा है कि चेहरा ठीक कराने के लिए आर्थिक मदद दी जाए।

 गलियों से अस्पताल तक फैला आतंक

बंदर और कुत्तों की वजह से लोग छतों तक पर सुरक्षित महसूस नहीं करते।

सीएमओ ऑफिस और कांशीराम हॉस्पिटल जैसे संवेदनशील जगहों पर भी इनका जमावड़ा है।

कई बार ये तीमारदारों और मरीजों पर भौंकते या दौड़ पड़ते हैं।

नगर निगम की टीम अक्सर देर से सक्रिय होती है, जिससे लोगों का गुस्सा और बढ़ता जा रहा है।


आंकड़े: एक लाख लावारिस कुत्ते कानपुर में करीब 1 लाख लावारिस कुत्ते हैं।

इनमें से कई हिंसक हो जाते हैं और लोगों की जान के लिए खतरा बन जाते हैं। नगर निगम इन कुत्तों को पकड़कर तीन दिन तक डॉग कंट्रोल सेंटर में रखता है, नसबंदी के बाद उन्हें फिर से उसी जगह छोड़ देता है।

फूलबाग और किशनपुर में नगर निगम के डॉग सेंटर हैं।

रोज़ाना करीब 60 कुत्तों की नसबंदी की जाती है।

हिंसक कुत्तों को सेंटर पर ही रोककर डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाता है।

लेकिन यह प्रक्रिया धीमी है और समस्या के समाधान से बहुत दूर है।

मांस-मछली की दुकानों वाले इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित

पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. निरंजन सिंह के मुताबिक, जहाँ मांस-मछली की दुकानें होती हैं, वहाँ के कुत्ते ज्यादा हिंसक होते हैं। वजह यह है कि उन्हें वहाँ मांस और जानवरों का खून आसानी से मिलता है। धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन जाती है और वे और आक्रामक हो जाते हैं।

ज़रूरत है ठोस एक्शन की

लोगों का कहना है कि निगम केवल औपचारिक कार्रवाई करता है, जबकि असली खतरा लगातार बढ़ रहा है। अब वक्त है कि:

लावारिस कुत्तों और बंदरों के लिए स्थायी शेल्टर बनाए जाएं।

नसबंदी अभियान तेज़ और व्यापक स्तर पर हो।

पालतू कुत्तों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए।

प्रभावित इलाकों में त्वरित रेस्क्यू टीम तैनात की जाए।

क्यों है यह मुद्दा खास?

यह सिर्फ एक छात्रा पर हमले की खबर नहीं, बल्कि पूरे शहर की सुरक्षा का मामला है। कानपुर जैसे बड़े शहर में एक लाख लावारिस कुत्ते और बढ़ती बंदरों की संख्या अब नागरिकों की आज़ादी, सुरक्षा और मानसिक शांति के लिए बड़ा खतरा बन गई है।

कानपुर डॉग-क्राइसिस 2025 इस बात का सबूत है कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो शहर की सड़कों पर इंसानों से ज्यादा जानवरों का राज होगा।