डॉ. राधेश्याम शुक्ल

डॉ. राधेश्याम शुक्ल

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Kanpur , Uttar Pradesh
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श्रेणी: General | लेखक : Super Admin | दिनांक : 24-Aug-25 04:15:09 PM

डॉ. राधेश्याम शुक्ल : ज्ञान और जिज्ञासा के यात्री

डॉ. राधेश्याम शुक्ल का जीवन ज्ञान, जिज्ञासा और सतत बौद्धिक खोज की प्रेरक गाथा है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के समीप जन्मे डॉ. शुक्ल का बचपन साधुओं, मंदिरों और आध्यात्मिक वातावरण के बीच बीता। शुरुआती शिक्षा के दौरान परिवार ने संस्कृत की ओर प्रेरित किया, लेकिन उनकी जिज्ञासा विज्ञान और अंग्रेज़ी की ओर थी। न्यूटन की जीवनी ने उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण और रहस्यों को जानने की गहरी ललक जगाई। यही आग्रह उन्हें फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स की ओर ले गया।

हालाँकि औपचारिक विज्ञान की पढ़ाई अधूरी रह गई, परंतु उनका स्वाध्याय निरंतर चलता रहा। पत्रकारिता की ओर बढ़ते हुए उन्होंने महसूस किया कि केवल विज्ञान से सत्य की संपूर्ण समझ संभव नहीं। इसी खोज ने उन्हें इतिहास, पुरातत्त्व और संस्कृति में एमए और पीएचडी करने की ओर अग्रसर किया। उनका अध्ययन केवल अकादमिक उपलब्धि नहीं, बल्कि ब्रह्मांड और मानव सभ्यता दोनों को जोड़ने का प्रयास था।

विज्ञान और इतिहास के साथ ही उन्होंने साहित्य, दर्शन और धर्मशास्त्र में भी गहरी रुचि ली। वैदिक ग्रंथों से लेकर यूरोपीय और अमेरिकी साहित्य तक, तथा पांडुरंग वामन काणे के धर्मशास्त्र का इतिहास तक, उनका अध्ययन बहुआयामी रहा। उनका दृष्टिकोण हमेशा यह रहा कि वस्तुनिष्ठ विज्ञान और चेतना-आधारित दर्शन को जोड़कर ही समग्र समझ विकसित की जा सकती है।

पत्रकारिता में उन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित अख़बारों में संपादन किया। इससे उन्हें सामाजिक-राजनीतिक जीवन और विविध परंपराओं से सीधा परिचय मिला। अयोध्या के होने के नाते वे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और करपात्री जी जैसे आचार्यों के विचारों से भी जुड़े।

उनके जीवन का एक और महत्त्वपूर्ण अध्याय रहा जनजातीय अध्ययन। अमरकंटक स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहते हुए उन्होंने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड की आदिवासी संस्कृतियों का गहन अध्ययन किया। उनका मानना है कि इन समाजों में पूर्ववैदिक संस्कृति की झलक आज भी जीवित है। यह दृष्टि हमें सोचने पर विवश करती है कि जिसे हम अक्सर 'पिछड़ा' कहते हैं, वही हमारी साझा जड़ों और भविष्य की दिशा को समझने की कुंजी हो सकता है।

डॉ. शुक्ल का जीवन एक अनवरत यात्रा है – बचपन की आध्यात्मिक भूमि से लेकर विज्ञान, इतिहास, साहित्य, दर्शन और समाज तक। वे इस बात के प्रतीक हैं कि असली ज्ञान तब जन्म लेता है जब हम विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने का साहस करते हैं और जिज्ञासा को जीवित रखते हैं।