मार्डन युग में हर इंसान कैरियर के साथ अपने लिए घर का सपना जरुर संजोकर रखता है। ऐसे में अब तो हर घर वास्तु शास्त्र के अनुसार ही लोग बनाने की पुरजोर कोशिश करते हैं लेकिन वास्तु शास्त्र की मूल भावना से शायद ही हर किसी को इल्म हो। ‘द हिन्दू टूडे, लंदन’ वास्तुशास्त्र की तारोताजा प्रस्तुति में आपको संक्षेप में वास्तु शास्त्र का मोटामोटा बोध कराने जा रहा है। इसमें तथ्यों के प्रस्तुतिकरण के साथ हम आपको कानपुर के वास्तुगुरू विमल झाझरिया से भी मुलाकात कराएंगे। उनके टिप्स घर निर्माण में आपके काम आ सकतीं हैं। आइए, वास्तु शास्त्र के इस डिजिटली प्रयोग में हम आप साझीदार बनें।
आगे बढ़ने से पहले समझ लें कि वास्तुशास्त्र हमारे भारत के ऋषियों और मुनियों की देन है क्योंकि ऋग्वेद में घर के रक्षक को वास्तुपति कहा जाता है, जिन्होंने सनातन की लौ निरंतर जलाने का काम किया है। और, भगवान विश्वकर्मा को इस शास्त्र का जनक कहा जाता है। शास्त्र की नींव भारतीय दर्शन, गणित, भूगोल, भूविज्ञान और धर्म पर आधारित है इसलिए भारतीयों का ईजाद किया गया शास्त्र पूरी तरह से प्रामणिक और वैज्ञानिक है।
-घर का मुख्य द्वार पूर्व या उत्तर दिशा में हो तो बेहतर
-घर का ढलान पूर्व, उत्तर या पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) की ओर होना शुभ। इन दिशाओं में बोरिंग भी
-पूर्व दिशा वाले घर सबसे अच्छे, उत्तर-पश्चिम भी विकल्प
-घर के आगे और पीछे छोटा ही सही, पर आंगन हो
-रसोईघर आग्नेय कोण यानी दक्षिण-पूर्वी दिशा
-अतिथि कक्ष उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम
-घर में खिड़की और दरवाज़ों की कुल संख्या सम हो
घर में साथ दौड़ते हुए घोड़ों की तस्वीर अच्छा और इसे दक्षिण दिशा में लगाएं।